मैं, ( प्रवीण विजय ) स्वयं को जासूस नहीं कहूंगा क्योंकि जिस काल्पनिक चरित्र से मैं प्रेरित हूं उन्होंने कभी भी अपने आप को जासूस नहीं माना है , मैं उनकी अवधारणाओं को सत्य मानकर स्वयं को उनके समान अद्वितीय बनाना चाहता हूं । मेरे अप्रत्यक्ष चरित्र में छुपे ब्योमकेश बक्शी से प्रेरित होकर मैंने सत्य की खोज करना प्रारंभ किया है , सत्य की खोज में मैंने कई त्रुटियां की परंतु कभी हार नहीं मानी तथा आज उसी पथ पर अग्रसर हूं।
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